Independence Day Insider Story
स्वतंत्रता दिवस की अनकही कहानी: जब भारत 15 अगस्त को स्वतंत्रता का जश्न मनाता है, तब उन नायकों को याद किया जाता है जिन्होंने इस ऐतिहासिक उपलब्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनमें से एक प्रमुख नायक थे खान अब्दुल गफ्फार खान, जिन्हें 'सरहदी गांधी', 'फ्रंटियर गांधी', 'बादशाह खान' और 'बच्चा खान' के नाम से जाना जाता है। उनका जीवन, संघर्ष और गांधीवादी विचारधारा के प्रति उनकी निष्ठा आज भी प्रेरणा का स्रोत है।
गांधीवादी विचारधारा का पालन
खान अब्दुल गफ्फार खान ने गांधीवादी विचारों को अपनाया और भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में सक्रिय रूप से भाग लिया। जब पाकिस्तान के निर्माण की बात आई, तो उन्होंने इसका विरोध किया। विभाजन के बाद उनका पुश्तैनी घर पाकिस्तान में चला गया, लेकिन पाकिस्तान ने उन्हें कभी स्वीकार नहीं किया और वे कई वर्षों तक जेल में रहे। उनकी मृत्यु भी नजरबंदी में हुई। 1987 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया, और वे पहले गैर-भारतीय थे जिन्हें यह सम्मान मिला।
परदादा अब्दुल्ला खान की भूमिका परदादा अब्दुल्ला खान का योगदान
बादशाह खान का जन्म एक सुन्नी मुस्लिम परिवार में हुआ था, जहां उनके पिता आध्यात्मिक थे। उनके परदादा अब्दुल्ला खान ने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई, जिससे बादशाह खान को राजनीतिक जागरूकता मिली। अलीगढ़ से स्नातक करने के बाद, वे लंदन जाना चाहते थे, लेकिन परिवार की सहमति न मिलने पर उन्होंने समाज सेवा में कदम रखा और बाद में स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए।
पश्तूनों के लिए जागरूकता अभियान पश्तूनों को जागरूक करने का प्रयास
20 वर्ष की आयु में, उन्होंने अपने गृहनगर उत्मान जई में एक स्कूल की स्थापना की, लेकिन अंग्रेजी शासन ने इसे 1915 में बंद कर दिया। इसके बाद, उन्होंने पश्तूनों को जागरूक करने के लिए कई गांवों की यात्रा की, जिसके बाद लोग उन्हें 'बादशाह खान' के नाम से जानने लगे।
महात्मा गांधी से मुलाकात गांधी जी से पहली मुलाकात
बादशाह खान ने 1928 में महात्मा गांधी से मुलाकात की और उनकी अहिंसा की राजनीति से प्रभावित हुए। उन्होंने गांधी जी के सिद्धांतों को अपनाया और कांग्रेस में शामिल हो गए। उन्होंने 'खुदाई खिदमतगार' नामक संगठन की स्थापना की, जो गांधी जी के सिद्धांतों से प्रेरित था।
नमक सत्याग्रह में गिरफ्तारी नमक सत्याग्रह के दौरान गिरफ्तारी
नमक सत्याग्रह के दौरान, गफ्फार खान को गिरफ्तार किया गया। उनके समर्थकों ने विरोध प्रदर्शन किया, जिसके परिणामस्वरूप अंग्रेजों ने निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाईं, जिसमें 200 से अधिक लोग मारे गए।
भारत के विभाजन का विरोध भारत के विभाजन का विरोध
जब ऑल इंडिया मुस्लिम लीग ने भारत के विभाजन पर जोर दिया, तो बादशाह खान ने इसका कड़ा विरोध किया। 1947 में विभाजन के बाद, वे पाकिस्तान चले गए, लेकिन वहां की सरकार ने उन्हें शत्रु समझा और कई वर्षों तक जेल में रखा। 1988 में उनकी मृत्यु हुई।
भारत की आजादी और विभाजन आजादी के साथ विभाजन का ठप्पा
भारत की आजादी के साथ विभाजन की त्रासदी भी जुड़ी हुई थी। 1947 में भारत का विभाजन हुआ और पाकिस्तान का निर्माण हुआ। यह घटना भारतीय इतिहास की सबसे दुखद घटनाओं में से एक मानी जाती है।
माउंटबेटन का 3 जून प्लान माउंटबेटन का 3 जून प्लान
माउंटबेटन ने एक योजना बनाई, जिसे 3 जून प्लान कहा जाता है, जिसमें भारत के विभाजन का निर्णय लिया गया। इस योजना के तहत रियासतों को भारत या पाकिस्तान के साथ जुड़ने का विकल्प दिया गया।
ब्रिटिश सरकार द्वारा हाईकोर्ट की स्थापना ब्रिटिश सरकार द्वारा हाईकोर्ट की स्थापना
ब्रिटिश सरकार ने भारत में पहले हाईकोर्ट की स्थापना की, जिससे भारतीयों को न्याय की एक समान प्रणाली मिली। 1861 में इंडियन हाईकोर्ट एक्ट पास होने के बाद, न्यायालयों का एकीकरण हुआ।
कोलकाता हाईकोर्ट की स्थापना कोलकाता हाईकोर्ट की स्थापना
इस कानून के तहत सबसे पहले कोलकाता हाईकोर्ट की स्थापना की गई, इसके बाद बॉम्बे हाईकोर्ट की स्थापना हुई।
हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति
हाईकोर्ट में प्रारंभ में 15 जजों की नियुक्ति का आदेश दिया गया, जबकि केवल 7 जजों को नियुक्त किया गया।
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